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पुलिस कर्मियों को दी जा रही तीन नए कानून की जानकारी

एक जुलाई से भारत में लागू होंगे नए अपराधिक कानून 

लिच्छवी भवन में तीन सत्रों में प्रशिक्षण शुरू 20 जून तक चलेगा

राजीव कुमार पाण्डेय (भभुआ)।  करीब 152 वर्ष बाद संसद से पारित तीन नए अपराधिक कानून 1 जुलाई से भारत में लागू होने जा रहे हैं।नए कानूनों की पूरी समझ विकसित करने के उद्देश्य से पुलिस कर्मियों को गहनता से डिजिटल मोड में वर्क शॉप के जरिए प्रशिक्षित करने का काम किया जा रहा है, जिसमें जिले के पीटीसी उत्तीर्ण पुलिस कर्मी से लेकर पुलिस अधीक्षक स्तर तक के पदाधिकारी शामिल हैं।प्रशिक्षण की शुरुआत सोमवार को लिच्छवी भवन में हुई जो 20 जून तक तीन सत्रों में संचालित होगा।जानकारी के अनुसार बहुत जल्द कोर्ट से वारंट और कुर्की का ऑर्डर भी डिजिटल ही मिलेगा।इतना ही नहीं पुलिस पदाधिकारी को स्मार्टफोन और लैपटॉप भी मिलने वाला है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में अनुसंधान के समय में कैसे विधि विज्ञान का प्रयोग कर सकते हैं और किस तरह से डिजिटल पुलिसिंग को बढ़ावा दे सकते हैं इसके बारे में भी पुलिस पदाधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। गंभीर अपराध के घटनास्थल पर उपलब्ध साक्ष्य को किस तरह से संकलन करना है,घटनास्थल की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कैसे करानी है आदि के बारे में बताया जा रहा है। पुलिस को पूरी तरह से डिजिटल बनाकर अनुसंधानकर्ताओं को मोबाइल व लैपटॉप दिए जाने की बाते कही जा रही हैं।बता दें कि आपराधिक न्याय व्यवस्था से संबंधित तीनों नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस), भारतीय न्याय द्वितीय संगीता 2023 (बीएनएस) एवं भारतीय साक्ष्य द्वितीय अधिनियम 2023 देश में 1जुलाई से लागू होंगे। पिछले साल 25 दिसंबर को ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इन कानून को अपनी सहमति दे दी थी। गृह मंत्रालय ने इससे जुड़ी अधिसूचना 24 फरवरी को जारी कर दी थी।अब ये तीनों नए कानून औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता ,दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। तीनों कानूनों का उद्देश्य विभिन्न अपराधों को परिभाषित करके उनके लिए सजा तय कर देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलना है, जिससे आपराधिक घटनाओं को नियंत्रित किया जा सके और मामलों का निष्पादन तुरंत हो। नए क्रिमिनल लकार में धोखाधड़ी करने वाला 420 नहीं 316 कहलायेगा।

पहली बार आतंकवाद को किया गया परिभाषित 

आतंकवाद शब्द को पहली बार भारतीय न्याय संहिता में परिभाषित किया गया है यह आईपीसी में पहले मौजूद नहीं था बीएनएस में आतंकवाद को धारा 113 (1) के तहत दंडनीय अपराध बनाया गया है। इस कानून में आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा दी गई है राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त कर दिया है और राज्य के खिलाफ अपराध नामक एक नया खंड जोड़ा गया है। आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास से दंडनीय बना दिया गया है इसमें पैरोल की सुविधा नहीं होगी। भारतीय दंड संहिता 1860 के राजद्रोह के प्रावधानों को निरस्त करता है। इसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 से बदला गया है। राष्ट्रीय की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाली सभी धाराएं इसमें जोड़ी गई हैं।

मॉब लिंचिंग के लिए उम्र कैद या मौत की सजा 

भारतीय न्याय संगीता में मां लिंचिंग या हेट क्राइम मर्डर के लिए आजीवन कारावास या मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है। यह उन मामलों से संबंधित है जहां पांच या अधिक लोगों की भीड़ जाति या समुदाय ,लिंग, जन्म ,स्थान ,भाषा ,व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार के आधार पर हत्या करती है। पहले के बिल में इस अपराध के लिए न्यूनतम सजा 7 साल बताई गई थी नए प्रावधानों को विधयक की धारा 103 में शामिल किया गया जो मॉब लिंचिंग और अपराधों से संबंधित अपराधों के लिए हत्या की सजा से संबंधित है। भारतीय साक्ष्य (द्वितीय ) अधिनियम 2023 को भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह लाया गया है। इसके तहत अदालत में प्रस्तुत और स्वीकार्य साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक एंड डिजिटल रिकॉर्ड, कंप्यूटर ,स्मार्टफोन,लैपटॉप, एसएमएस, इंटरनेट और उपकरणों पर संदेश शामिल होंगे ।

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