ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है गुरु ….
गुरू की महिमा भगवान से भी श्रेष्ठ …
राजेश चौबे (बक्सर)। “गुरु बिन ज्ञान न उपजै गुरु बिन मिलै न मोक्ष । गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मिटै न दोष।।” अर्थात गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नही होती और न ही मोक्ष मिल सकता है। गुरु के बिना सत्य की प्राप्ति भी नहीं होती और न ही दोष मिट पाते हैं। भारतीय संस्कृति मे गुरू की महिमा भगवान से भी श्रेष्ठ बतायी गयी है। अतः हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व है। संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ “अंधकार (अज्ञान)” एवं ‘रु’ का अर्थ “प्रकाश (ज्ञान)” होता है। अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाने वाला ही गुरु है। गुरु, एक ऐसा शब्द है जो ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिंब है।
कहा गया है – अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ अर्थात अज्ञान रूपी अन्धकार से अंधे हुए जीव की आंखों को जिसने अपने ज्ञानरुपी शलाकाओ से खोल दिया है, ऐसे श्री गुरु को प्रणाम है।
रविवार को है गुरु पूर्णिमा
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई (रविवार) को है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 20 जुलाई (शनिवार) के शाम 05:59 से 21 जुलाई (रविवार) को दोपहर 03:46 तक है।
महर्षि वेदव्यास के शिष्यों ने की थी गुरु पूर्णिमा की शुरुआत
माना जाता है कि वेदव्यास जी के शिष्यों ने गुरु पूर्णिमा पर्व मनाने की शुरुआत की थी। महाभारत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी ने की थी। वेदव्यास जी महर्षि पाराशर और माता सत्यवती के पुत्र थे। उनका जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। वेदव्यास जी के शिष्यों ने उनकी जन्म तिथि पर गुरु के पूजन की शुरुआत की थी और उन्हें गुरु दक्षिणा दी थी। अतः गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व का महत्व गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक है। इस दिन, शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए उनका सम्मान करते हैं। गुरु पूर्णिमा भारत में आध्यात्मिक गुरु के साथ-साथ अकादमिक गुरु के के प्रति सम्मान दिखाने के लिए मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन सभी लोगों को अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ गुरु और शिष्य के बीच का संबंध अच्छा होता है बल्कि दोनों को एक दूसरे के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है।
गुरु पूर्णिमा पर गुरु की पूजा कैसे करें…..
गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातः काल मे स्नान करके उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण करे । इसके बाद अपने प्रथम गुरु माता- पिता से आशीर्वाद प्राप्त करके भगवान श्री हरि विष्णु और महर्षि व्यास को सुगंधित फल- फूल इत्यादि अर्पित कर प्रणाम करे। गुरु दीक्षा ले चुका व्यक्ति अपने गुरु को ऊँचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनाकर पूजन करे ।इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर और यथासामर्थ्य धन के रूप में गुरु दक्षिणा देकर गुरु का आशीर्वाद ले ।