
श्रीराम ने ताड़का को मारकर की विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा ….
श्रीकृष्ण ने कालिया नाग के फनों पर बजायी वंशी
बीआरएन बक्सर । श्री रामलीला समिति,बक्सर के तत्वावधान में रामलीला मैदान स्थित विशाल मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के दौरान आज पांचवे दिन रविवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में दिन में कृष्ण लीला व रात्रि पहर रामलीला का मंचन किया गया. जिसमें देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान ‘विश्वामित्र आगमन, ताड़का वध’ के प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि बक्सर निवासी महर्षि विश्वामित्र जब भी यज्ञ करने को तत्पर होते है तो राक्षस आकर उनके यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं. मुनि इन राक्षसों को भय दिखाकर भगा देते हैं. परंतु निर्विघ्न यज्ञ पूर्ण कैसे हो इसको लेकर उनकी चिंता बढ़ जाती है. इसकी सुरक्षा को लेकर वह काफी चिंतित रहते हैं. और इसी उदेश्य को लेकर अवधपुरी को प्रस्थान करते हैं. अवधपुरी पहुंचने पर अयोध्या नरेश राजा दशरथ द्वारा महर्षि का भव्य स्वागत होता है. आने का प्रयोजन पूछे जाने पर विश्वामित्र जी राजा दशरथ से यज्ञ रक्षा के लिए राम व लक्ष्मण दोनों भाइयों की मांग करते हैं.पहले तो अयोध्या नरेश इनकार कर देते हैं. परंतु गुरु वशिष्ठ के बहुत समझाने पर बाद में दोनों भाइयों को देने को तैयार हो जाते हैं. तब माता से आज्ञा लेकर राम और लक्ष्मण विश्वामित्र जी के साथ बक्सर वन को प्रस्थान करते हैं. मार्ग में आतंक की पर्याय ताड़का राक्षसी मिलती है. जहाँ गुरुदेव की आज्ञा पाकर श्रीराम उस राक्षसी को अपने बाणों से वध कर उसका उद्धार करते हैं. महर्षि प्रसन्न वदन होकर दोनों को अपनी कुटिया में ले जाते हैं, और दोनों भाईयों को शस्त्र विद्या में पारंगत करते हैं. उसके पश्चात् विश्वामित्र जी यज्ञ को प्रारंभ कराते हैं. उसी समय मारीच, सुबाहु आकर यज्ञ भंग करने की कोशिश करते हैं तभी श्रीराम एक छींक का बाण मार कर मारीच को सौ योजन समुद्र पार भेज देते हैं और सुबाहु का वध करते हैं.जब विश्वामित्र का यज्ञ संपन्न होता है तभी महर्षि विश्वामित्र मुनि के पास राजा जनक का जनकपुर से धनुष यज्ञ का निमंत्रण आता है. इस प्रसंग को देख श्रद्धालु जय श्रीराम का उद्घोष करने लगते हैं और जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठता है. रामलीला देखने दूरदराज से लोग पहुंच रहे हैं जिसके कारण देर रात तक पंडाल खचाखच भरा हुआ था.
इसके पूर्व दिन में श्री कृष्ण लीला के क्रम में ‘कालीदह लीला के प्रसंग का मंचन किया गया, जिसमें दिखाया गया कि यमुना के कालीदह के विषैले पानी को शुद्ध कराने के लिए मथुरा के राजा कंस को नारद मुनी ने सलाह दी कि जिस कालीदह में कालिया नाग रहता है उसमें नीलकमल के फूल खिले हुए हैं। नंद बाबा से पूजा के लिए एक करोड़ नीलकमल के फूल की मांग करें। जब भगवान कृष्ण फूल तोड़ने काली दह में जाएंगे तो उनकी मौत हो जाएगी।उनके सलाह पर कंस ने नंद बाबा के यहाँ नीलकमल फूल लिए संदेश भेजा गया. खबर पहुचते गोकुल वासी भयभीत हो गए। यह देखकर श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ कालीदह स्थित जाकर गेंद का खेल खेलते हैं और खेलते खेलते जान बूझकर कालीदह में गेंद फेंक देते हैं। जब वही गेंद लाने के लिए सखा दामा ने हठ की तो भगवान काली दह में कूद जाते हैं, जहां सुंदर नीलकमल खिले होते है. इसकी खबर पूरे गोकुल में फ़ैल जाती है और गोकुल में हाहाकार मच जाता है. नंद बाबा, यशोदा मैया के विलाप से पूरे पांडाल में सन्नाटा छा गया. श्रीकृष्ण नदी के पानी से काफी देर तक बाहर नही निकलते है तो गोकुलवासी नदी तट पर एकत्र होकर चिंतित हो उठते है। कुछ ही देर में भगवान कालिया नाग के फनों को नाथकर उस पर खड़े हो वंशी बजाते हुए बाहर आ जाते है. उनके इस रूप को देखकर गोकुलवासी खुशी से गदगद हो उठते है. कृष्ण की जय-जयकार करने लगे. वहीं भगवान के इस दिव्य रुप का दर्शन व आरती कर श्रद्धालुओं ने भी माथा भी टेका.
लीला मंचन के दौरान समिति के सचिव बैकुण्ठ नाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता, कोषाध्यक्ष सुरेश संगम, कृष्ण कुमार वर्मा, उदय कुमार सर्राफ (जोखन जी), कमलेश्वर तिवारी, राजकुमार गुप्ता, नारायण राय, सुमीत मानसिंहका, बबुआ तिवारी, मंटू सिंह सहित कई पदाधिकारी व सदस्य मुख्य रूप से उपस्थित थे.
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