संस्कृत में छपवाया अपनी शादी का कार्ड तो लोगों ने की प्रशंसा
विवाह संस्कार पूर्वक ही व्यक्ति वस्तुतःगृहस्थ जीवन मे करता है प्रवेश
राजेश चौबे
विवाह एक पवित्र संस्कार है । विभिन्न कर्मकांडों जैसे द्वारपूजा , मंडप निर्माण, वाग्दान, सप्तपदी, अग्निस्थापना, सिन्दूर दान, इत्यादि पूर्वक वैदिक विधी से मंत्रोच्चारण के साथ पवित्र भावनाओं से वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होता है । विवाह संस्कार कुल सोलह संस्कारों मे से एक है । विवाह संस्कार के साथ ही व्यक्ति गृहस्थ जीवन मे प्रवेश करता है ।
एक ऐसा भी समय था जब देवभाषा संस्कृत मे वैवाहिक निमंत्रण पत्र हाथ से लिखकर दिए जाते थे, जिसपर पीसी हुई हल्दी के छींटें शुभ कार्य के प्रतीक माने जाते थे । समय के साथ पाश्चात्य देशों की सभ्यताओं ने विवाह जैसे पवित्र शब्द को अंग्रेजी के मैरिज शब्द मे इस कदर बदल दिया कि विवाह के निमंत्रण पत्रों (कार्डों) को हिंदी के साथ-साथ आंङ्लभाषा में छपवाने की होड मच गयी है। यहीं नही महंगा कार्ड वैवाहिक बंधन मे बंधने वाले जोडों की हैसियत का मानक पैमाना बन गया है ।
ऐसे समय मे बक्सर पीसी कॉलेज के पास के रहने वाले पवन उपाध्याय ने अपनी शादी का कार्ड संस्कृत में छपवाकर नई पीढी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। तभी तो जिसे भी संस्कृत मे छपा निमंत्रण पत्र प्राप्त हुआ, वह आश्चर्य व्यक्त करते हुए इस पहल की प्रशंसा किया ।
निमंत्रण पत्र प्राप्त करने वालों मे से युवा सम्राट ऋतुराज मौर्य ने बताया कि यह बहुत ही अच्छा कदम है। इससे संस्कृत भाषा को लेकर जागरूकता बढ़ेगी। इस भाषा का संरक्षण करना हर भारतीय का कर्तव्य है। भारत सरकार ने संस्कृत को आठवीं अनुसूची में शामिल कर रखा है, जो इसे भारत की राजभाषाओं में से एक बनाता है।
पवन उपाध्याय ने बताया कि संस्कृत में कार्ड छपवाने की प्रेरणा उन्हे परम पूज्य गुरुदेव श्री नारायण दास भक्त माली मामा जी से मिली थी। वह बचपन से ही मामा जी के शिष्य रहे हैं और नई बाजार स्थित राम जानकी आश्रम से जुड़े रहे हैं। मामा जी का संस्कृत से बड़ा गहरा लगाव था। उनका मानना है कि अगर इस कार्ड को देखकर 10 लोग भी अपने शादी का कार्ड संस्कृत में छपवाते हैं तो उनके इस कार्ड का उद्देश्य सफल हो जाएगा। पवन उपाध्याय गोपाल जी उपाध्याय के पुत्र है जिनकी शादी जारीगांवा के रहने वाले मृत्युंजय चौबे की सुपुत्री कुमारी शिखा चौबे से तय हुई है।