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पंचकोसी परिक्रमा के तीसरे पड़ाव भभुअर मे भार्गवेश्वर नाथ की पूजा अर्चना के पश्चात दही- चूड़ा का लगा भोग..

बीआरएन बक्सर । श्रद्धालुओं का जत्था शुक्रवार को पंचकोसी परिक्रमा के तीसरा पडाव भभुअर गांव पहुंचा, जहां भार्गव सरोवर में स्नान कर भार्गवेश्वर नाथ के मंदिर में दर्शन-पूजन किया । इसके बाद उनलोगों ने दही- चूड़ा का प्रसाद खाकर भजन-कीर्तन करते हुए रात गुजारी। इस दौरान साधु संतो ने अपने प्रवचन के दौरान भार्गव आश्रम के महत्व तथा पंचकोसी यात्रा के उद्देश्य को कथा के माध्यम से बताया । पौराणिक किंवदन्ती के अनुसार त्रेतायुग में मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जब महर्षि विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए बक्सर आये थे , तो पांच गांवों की परिक्रमा के दौरान अलग-अलग व्यंजनों को ऋषियों के प्रसाद के रूप मे ग्रहण किये थे । इसी दौरान वह अपने अनुज लक्ष्मण के साथ भभुअर पहुंचे थे, जहां महर्षि भृगु रहते थे । महर्षि ने दोनो भाईयों को चूड़ा-दही खिलाकर आतिथ्य धर्म का पालन किया था । इसी मान्यता के अनुसार लोग अहिरौली और नदांव के बाद भभुअर आते है और मंदिर मे पूजा अर्चना कर दही चूडा प्रसाद के रूप मे ग्रहण करते है ।   पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग मे लक्ष्मण जी ने भार्गव सरोवर का निर्माण किया था । जब वह भभुअर स्थित महर्षि भार्गव के आश्रम पहुंचे तो उन्हें जल की कमी महसूस हुई तो वह पृथ्वी पर बाण चलाकर जलधारा प्रकट किये । जो कालांतर मे सरोवर बन गया । कहा जाता है कि इस सरोवर मे स्नान करने से व्यक्ति रोग मुक्त होते हुए मोक्ष प्राप्त करता है ।

 गौरवमयी संस्कृति व परंपरा को जीवंत रखने का अनूठा उदाहरण है पंचकोसी परिक्रमा – डाॅ मनोज पांडे

पंचकोसी यात्रा के तीसरे दिन भभुअर मे हजारों श्रद्धालुओं की भीड रही । कांग्रेस जिलाध्यक्ष डाॅ मनोज पांडे ने जिला कमेटी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ वहां पहुंचकर विधि विधान से भार्गवेश्वर महादेव की पूजा किया। साथ ही मेला मे उपस्थित संत महात्माओं का आशीर्वाद प्राप्त किया एवम श्रद्धालुओं मे दही चूड़ा का प्रसाद भी वितरण किया। उक्त अवसर पर डॉ पांडे ने कहा कि भभुअर पंचकोसी यात्रा का तीसरा पडाव है , जहां भार्गवेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। सुख समृद्धि हेतु सदियों से भक्त यहां पहुचते हैं और भगवान की अराधना करने के साथ दही चूड़ा का भोग लगाते है। फास्ट फूड के जमाने मे पंचकोसी परिक्रमा अपनी गौरवमयी संस्कृति व परंपरा को जीवंत रखने का अनूठा उदाहरण है।यह केवल मेला ही नही है, बल्कि युगों से चली आ रही विभिन्न ग्रामीण सुपाच्य व्यंजनों की महता पर आधारित लोकपरंपरा नई पीढी के लिए एक अहम सीख है। इससे बक्सर का महात्म्य जुडा है।

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