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दूसरे दिन श्री कृष्ण जन्म और नारद मोह लीला का हुआ हृदयग्राही मंचन… 

21 दिवसीय कार्यक्रम के दौरान दिन में श्रीकृष्ण लीला तथा रात्रि में रामलीला का हो रहा है दिव्य मंचन

बीआरएन बक्सर । श्री रामलीला समिति के तत्वाधान में नगर के रामलीला मैदान में चल रहे 21 दिवसीय विजयदशमी महोत्सव के दौरान दूसरे दिन गुरुवार को वृंदावन से पधारे सर्वश्रेष्ठ रामलीला मंडल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में गुरुवार को दिन की लीला में कृष्ण लीला के दौरान मंडल के कलाकारों द्वारा श्री कृष्ण जन्म लीला प्रसंग का मंचन किया गया।

कृष्ण लीला मे दिखाया गया कि मथुरा के राजा कंस अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से कराता है। जब कंस अपनी बहन देवकी को विदा करने जा रहा था तो मार्ग में आकाशवाणी हुई, तू जिस देवकी को विदा करने जा रहा है उस का “आठवां पुत्र” तेरा काल होगा। यह सुनकर कंस अपनी बहन को मारने को उद्धत होता है। परंतु उग्रसेन के विरोध के पश्चात वासुदेव देवकी को कारागार में डाल स्वयं मथुरा का राजा बन बैठता है। जब देवकी का प्रथम पुत्र हुआ तो कंस ने उसे वापस कर दिया। तब नारद जी ने समझाया आठवां पुत्र ऊपर या नीचे की गिनती से कोई भी हो सकता है, तब कंस ने देवकी के छ: संतानों को समाप्त कर दिया। सातवां पुत्र गर्भ में ही नष्ट हो गया। आठवें पुत्र के रूप में “श्री कृष्ण” का जन्म होता है। वासुदेव उन्हें रात्रि में ही यमुना पार गोकुल में नंद-यशोदा के यहां पहुंचा देते हैं। यह दृश्य देख दर्शक भाव विभोर हो जाते हैं।

वहीं देर रात्रि रामलीला प्रसंग के दौरान “नारद मोह लीला” के चरित्र का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि नारद जी हिमालय की कंदराओं मे समाधिरत होते हैं। जिससे देवराज इंद्र का सिंहासन डोल पड़ता है। यह देख देवराज चिंतित हो जाते हैं और नारद जी के ध्यान भंग करने के लिए कामदेव को उनके समक्ष भेजते हैं। कामदेव समस्त कलाओं का प्रयोग करने के पश्चात भी नारद जी का ध्यान भंग नहीं कर पाते और अंत में उनके चरणों में शरणागत हो याचना करने लगते हैं। नारद जी उन्हें क्षमा कर देते हैं, परंतु कामदेव को पराजित करने का उन्हें अभिमान हो गया कि मैंने काम और क्रोध दोनों को जीत लिया। वह अभिमान से वशीभूत होकर यह बात ब्रह्मा जी, शंकर जी से बताते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंच जाते हैं। इनके अभिमान को देख कर प्रभु माया रुपी नगर की रचना करते हैं। उस माया रूपी नगरी में विश्व मोहिनी नामक सुंदर स्त्री को देख नारद जी मोहित हो जाते हैं और उसे विवाह करने के लिए श्री हरि से सुंदर रूप मांगते हैं। नारायण उन्हें बंदर का रूप प्रदान कर दे देते हैं. यह देख कर सभी लोग नारद का उपहास करते हैं। नारद जी क्रोध में आकर नारायण को पृथ्वी पर आने का श्राप देते हैं। इस लीला का मंचन देख दर्शक रोमांचित हो जाते हैं। रामलीला के दौरान समिति के पदाधिकारियों में समिति के कार्यकारी अध्यक्ष रामावतार पांडेय एवं सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, कृष्णा वर्मा, राजकुमार गुप्ता, उदय सर्राफ जोखन, चिरंजीलाल चौधरी, मंटू सिंह सहित अन्य सदस्य एवं कार्यकर्ता मुख्य रुप से मौजूद रहें।

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