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नन्द महोत्सव , मनु सतरूपा व रावण तपस्या का अद्भूत मंचन देख भाव विभोर हुए लोग …

नंद महोत्सव में ब्रजवासियों ने मनाई खुशियां, खुब गाये बधाई. “नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की….;

बीआरएन बक्सर ।  श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में नगर के किला मैदान स्थित विशाल रामलीला मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के तीसरे दिन शुक्रवार को वृंदावन से पधारे सुप्रसिद्ध मंडल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी”के सफल निर्देशन में वृंदावन के कलाकारों द्वारा देर रात्रि मंचित रामलीला प्रसंग के दौरान “मनु शतरूपा व रावण तपस्या व रामजन्म” का मंचन किया गया। वही दिन में मंचित कृष्णलीला में नन्द महोत्सव प्रसंग को दिखाया गया।

रात्रि पहर मंचित रामलीला में दिखाया गया कि महाराज मनु अपने सभा कक्ष में बैठे हुए मन में विचार करते हैं कि मुझे राज करते-करते काफी समय हो चुका अब अपने पुत्र उत्तानपाद को सिंहासन सौंप कर भगवत भजन करते हुए तपस्या में समय व्यतीत करना चाहिए। ऐसा निर्णय करके महाराज मनु अपनी महारानी शतरूपा के साथ नेमिसारण क्षेत्र वन प्रदेश को तपस्या के लिए चल पड़ते हैं. और वहां पहुंचकर महाराज मनु एवं शतरूपा घोर तप करते हैं उनके कठोर तप को देखकर भगवान प्रसन्न होकर महाराज मनु से वरदान मांगने को कहते हैं तब महाराज मनु नारायण से उन्हीं के समान पुत्र का वर मांगते हैं. आगे चलकर यही महाराज मनु दशरथ के रूप में और शतरूपा कौशल्या के रूप में जन्म लेती है। दूसरी तरफ दिखाया गया कि रावण व कुंभकरण भी तपस्या करते हैं और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव उन्हें वरदान देते हैं. रावण का विवाह मंदोदरी के साथ होता है. इधर रावण घोर अत्याचार करने लग जाता है रावण के पुत्रों एवं पौत्रों की गणना कोई नहीं कर सकता था एक-एक योद्धा जगत को जीतने की क्षमता रखता था यह देखकर रावण राक्षस दल को गाय और ब्राह्मणों पर अत्याचार करने का आदेश देता है. और राक्षस दल रावण के आदेश से घोर अत्याचार करने लगता हैं. आगे दिखाया गया कि रावण के अत्याचार बढ़ाने पर एवं इंद्र आदि देवताओं द्वारा प्रभु का स्मरण किए जाने पर नारायण भगवान प्रकट होकर सभी देवताओं को आश्वस्त करते हैं तब सभी देवता गण वहां से प्रसन्न वदन होकर चले जाते हैं.

इधर राजा दशरथ अपनी सभा में बैठे यह विचार करते हैं कि मेरे पास सब कुछ है, परंतु कोई संतान नहीं है. इस तरह का विचार करते हुए वह महाराज गुरु वशिष्ट के पास जाते हैं. और गुरु वशिष्ठ जी महाराज को संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करने का सुझाव देते हैं. महाराज गुरुदेव के सुझाव पर श्रृंगी ऋषि को बुलाकर पुत्रेष्टि यज्ञ करवाते हैं, जहां यज्ञ से अग्नि देव प्रकट होकर राजा दशरथ को हवी का प्रसाद देते हैं. जिसके प्रताप से महाराजा दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति होती है. उक्त लीला को देखकर श्रद्धालुगण भाव विभोर हो जाते हैं।

वहीं दिन में कृष्णलीला के दौरान “नंद महोत्सव” प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि जब ब्रजमंडल में बृजवासियों को पता चला कि नंद बाबा के यहां 85 वर्ष के उम्र में बच्चे ने जन्म लिया है, इसकी खबर लगते ही सभी बृजवासी अपने-अपने घरों से बधाई सामग्रियां लेकर नंद बाबा के घर पहुंचते हैं और सभी खुशियां मनाते हुए बधाई के गीत गाते हैं “नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की….;उक्त लीला का दर्शन कर श्रद्धालु रोमांचित होकर श्री कृष्ण की जयकार करते हैं, सारा परिसर जयघोष से गुंजायमान हो जाता है।

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