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132 वर्ष बाद आई गांव की याद, परिजनों से मिल नम हुई आंखें 

बीआरएन बक्सर।  जिले के केसठ गांव में एक अनोखी घटना घटी जब फिजी से एक दंपति पांच पीढ़ी बाद अपने पैतृक गांव पहुंचे। यह यात्रा केवल एक सामान्य यात्रा नहीं थी, बल्कि एक भावनात्मक सफर था, जिसमें इतिहास के कई पन्ने जुड़े हुए थे।132 वर्ष बाद एक दंपति परिवार सात समुद्र पार अपने अपने पैतृक का परिजनों से मिलने आए। 132 वर्ष बाद गैर प्रदेश फिजी में रहते हुए गांव की याद आई। जब अपने परिजनों से मिले तो पूरा माहौल राम और भरत मिलाप जैसा हो गया था।मामला केसठ गांव के नया बाजार का है।जहां एक परिवार से अंग्रेजी हुकूमत के समय गिरमिटिया मजदूर करीब 1892 ई में बना कर फिजी ले गए थे। वो गांव के राज कुमार बिगन थे। फिजी से आए हुए दंपति अनिल कुमार और नाशा कुमार थे। वे लोग बताते है कि अपने पूर्वजों से भारत की हुकूमत की कहानी सुना करते थे और कहानी के दौरान ही बताते थे कि बिहार के बक्सर जिले के केसठ गांव में हम लोग के पूर्वज हैं। नशा कुमार ने बताया कि करीब 2 वर्षों से भारत आने का प्लानिंग बन रहा था। एक सपना था कि हम भी अपने पूर्वजों के परिवार से मिले। दो वर्षों के सपना आज जाकर पूरा हुआ। उनका कहना है कि अगर मन में निष्ठा हो तो कुछ भी खोज कर निकाला जा सकता है। 132 वर्ष बाद अपने 6 वी पीढ़ी के परिवार से मिलकर उनकी आंखें नम हो गई थी और पूरा माहौल राम भरत मिलाप जैसा हो गया था।दोनों दंपति अनिल कुमार और नाशा कुमार न्यूजीलैंड में नौकरी करते है।अनिल बताते है कि वो न्यूजीलैंड पुलिस डिपार्टमेंट में हेड कांस्टेबल है। और वही उनकी पत्नी एक निजी कंपनी चलाती हैं। अनिल बताते हैं की अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हमारे ही पूर्वज गिरमिटिया मजदूर बनकर फिजी में अंग्रेजी सरकार के अनुसार काम कर रहे थे धीरे-धीरे उनकी हुकुमत खत्म होती गई और हमारे पूर्वज राजकुमार वहीं के नागरिकता ले लिए थे।

भारतीय संस्कृति से प्रभावित है दंपति 

दोनों ही दंपति भारतीय कल्चर से प्रभावित है उनकी पत्नी न्यूजीलैंड में रामायण सहित अन्य पूजा पाठ करती है। वो कहती है कि मुझे भारत देश बहुत अच्छा लगता है।

परिजनों को ढूंढने में पुलिस और मुखिया कर रहे हैं सहयोग 

दोनों दंपति को अपने परिजनों से मिलने के लिए नवानगर पुलिस और पंचायत मुखिया अरविंद कुमार यादव रुकमा प्रदान की सहयोग भरपूर रहा। दोनों दंपति अपने देश से सबसे पहले भोपाल के सीहोर में अपने गुरु महराज प्रदीप मिश्रा से मिल कर अयोध्या भगवान श्री राम की नगरी में भ्रमण कर अपने अपने पूर्वजों के गांव पहुंचे।

तस्वीर से हुई परिजन की पहचान

इस दंपति की पहचान उनके दादा की तस्वीर के माध्यम से हुई। जैसे ही गांव के लोग इस खबर से अवगत हुए, उनके स्वागत में पूरी गांव उमड़ पड़ी। गांव में उत्सव जैसा माहौल बन गया था। कई ग्रामीणों ने अपने-अपने अनुभव और कहानियाँ साझा कीं, जो उनके पूर्वजों ने सुनाई थीं।दंपति ने गांव के मंदिर में पूजा-अर्चना की और अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने गांव के लोगों से अपने पूर्वजों की यादें और उनकी संघर्ष भरी जिंदगी के बारे में जानने की कोशिश की। गांव के बुजुर्गों ने उन्हें बताया कि कैसे उनके पूर्वजों ने यहां से फिजी तक का सफर किया और वहां की कठिन परिस्थितियों में भी अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखा। गांव के मुखिया ने भी इस मौके पर अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारे गांव से जुड़े लोग फिजी जैसे दूर देश में भी हमारे नाम को जीवित रखे हुए हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि गांव हमेशा उनके स्वागत के लिए तैयार रहेगा और वे जब चाहें यहां आ सकते हैं।मुखिया ने कहा कि ये भारतीय संस्कृति का ही देन है और हमारे गांव के संस्कृत का ही देन है की गांव के वंशज दूसरे देश में रहकर भी अपनी संस्कृति को बटोर रखे हैं।इस यात्रा ने साबित कर दिया कि चाहे समय कितना भी बीत जाए, जड़ें हमेशा मजबूत रहती हैं और वे हमें हमारी पहचान से जोड़े रखती हैं। दंपति ने गांव से विदा लेते समय कहा कि यह यात्रा उनके जीवन की सबसे यादगार यात्रा रहेगी और वे जल्द ही वापस आने का वादा करके गए। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ कितनी समृद्ध हैं और उन्हें संजोने वाले लोग दुनिया के किसी भी कोने में हों, वे हमेशा अपने मूल से जुड़े रहते हैं।

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