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सत्य -धर्म का अनुसरण करने वाले पर सदैव रहती है ईश्वर की कृपा—-आचार्य रणधीर ओझा 

बीआरएन बक्सर । राजपुर प्रखंड के भरखरा ग्राम में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, उनके नामकरण संस्कार, चीरहरण, कालिया नाग उद्धार और गोवर्धन पूजा के दिव्य प्रसंगों का भावपूर्ण रूप से सजीवात्मक वर्णन किया। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को सुनने के लिए श्रद्धालुओं की काफी भीड रही। माखन चोरी, ग्वाल-बालों के साथ खेल और उनकी नटखट हरकतें न केवल आनंदित करने वाली थीं, बल्कि इनमें गहरे आध्यात्मिक अर्थ भी समाहित थे। आचार्य जी ने समझाया कि भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं हमें सिखाती हैं कि जीवन को सरलता और आनंद के साथ जीना चाहिए। उन्होंने बताया कि इन लीलाओं में श्रीकृष्ण का संदेश था कि ईश्वर सदैव अपने भक्तों के साथ होते हैं और उनके हर कार्य में, भले ही वह साधारण सा प्रतीत हो, एक दिव्य उद्देश्य होता है।

इसके बाद, भगवान श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार का प्रसंग सुनाया गया, जिसमें महर्षि गर्ग ने उन्हें ‘कृष्ण’ नाम दिया, जिसका अर्थ है – जो सबको आकर्षित करता है। इस प्रसंग में आचार्य जी ने भगवान के उस स्वरूप का वर्णन किया, जो संपूर्ण सृष्टि के आकर्षण का केंद्र है। नामकरण संस्कार में, श्रीकृष्ण का यह स्वरूप न केवल उनके दिव्य गुणों को दर्शाता है, बल्कि इस बात को भी पुष्ट करता है कि उनका जन्म ही धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ है।इसके बाद गोपियों के चीरहरण प्रसंग का वर्णन हुआ, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के वस्त्र वापस देकर उनके पूर्ण समर्पण और भक्तिभाव को सम्मानित किया। आचार्य रणधीर ओझा जी ने इस लीला को भक्त और भगवान के बीच के निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक बताया। उन्होंने समझाया कि भगवान की शरण में जाने के लिए भक्त को अपने सभी आडम्बरों और मिथ्या अहंकार को त्यागना पड़ता है, और केवल निष्कपट भक्ति ही उन्हें भगवान के समीप लाती है। यह प्रसंग इस बात का प्रतीक है कि सच्चे समर्पण के लिए भक्त को सभी सांसारिक मोह-माया से मुक्त होना चाहिए।कालिया नाग उद्धार की कथा में भगवान श्रीकृष्ण का यमुना नदी में उतरना और अत्याचारी कालिया नाग के फनों पर नृत्य कर उसे पराजित करना वर्णित हुआ। आचार्य जी ने बताया कि यह प्रसंग धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष का प्रतीक है। कालिया नाग के अत्याचार को समाप्त कर, श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों को अभय दान दिया और धर्म की स्थापना की। यह प्रसंग हमें यह शिक्षा देता है कि सत्य और धर्म का अनुसरण करने वाले सदैव ईश्वर की कृपा और सुरक्षा प्राप्त करते हैं।

कथा के अंत में गोवर्धन पूजा का दिव्य प्रसंग प्रस्तुत किया गया। आचार्य रणधीर ओझा जी ने इस प्रसंग के माध्यम से बताया कि किस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने गांववासियों को इंद्र देव की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया। यह प्रसंग हमें प्रकृति और अपने संसाधनों के प्रति कृतज्ञता का संदेश देता है। गोवर्धन पूजा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मनिर्भरता और प्रकृति के संरक्षण का महत्व बताया, साथ ही यह संदेश दिया कि सच्ची पूजा वही है, जो हमें अपने परिवेश और प्रकृति से जोड़ती है।

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