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भगवान की तरह भक्त भी अविनाशी होता है- जगद्गुरु राजेंद्र देवाचार्य जी महाराज 

बीआरएन व्यूरो ,बक्सर।

नया बाजार मे चल रहे सीताराम विवाह महोत्सव के तीसरे दिन श्रीमद्भागवत कथा वाचक मलूक पीठाधीश्वर जगद्गुरु राजेंद्र देवाचार्य जी महाराज ने सत्संग और भगवान की भक्ति को जीवन का सर्वश्रेष्ठ फल बताया। भगवान की तरह भक्त भी अविनाशी होता है। भगवान के भक्तों का कभी नाश या व्यय नहीं होता है। आचार्य और गुरु भगवान के ही स्वरुप हैं और गुरु का दर्शन भगवान के रूप में ही करना चाहिए। मनुष्य रूप मे गुरु का दर्शन करने से हमें दोष नजर आता है और गुरु में दोष का दर्शन करने वाले व्यक्ति के द्वारा कितनी भी कठिन साधना कर ली जाए उसका कल्याण नहीं हो सकता है।

खाकी बाबा एवं मामा जी महाराज जैसे संतों का साक्षात्कार करने वाला व्यक्ति सौभाग्यशाली होता हैं। भगवान आत्म स्वरूप है क्योंकि जो आत्मा से अलग होगा वह अनात्मा अर्थात जड़ होगा। भगवान का दर्शन आत्म स्वरूप ही होता है और आत्म स्वरूप दर्शन प्राप्त करते ही मनुष्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।जिस व्यक्ति को आत्म स्वरूप दर्शन प्राप्त हो जाता है उसकी दृष्टि सर्वत्र भगवद् दृष्टि हो जाती है। उसे समस्त जगत में ब्रह्म ही नजर आते हैं और ऐसा व्यक्ति इच्छा विहीन , नि:संकल्प और निष्काम वृति का हो जाता है। संकल्प निष्काम वृति का व्यक्ति द्वेष रहित हो जाता है। और जब मनुष्य के अंदर का द्वेष समाप्त हो जाता है तो वह जगत के कल्याण के निमित्त कार्य करने लगता है।

श्रीमद्भागवत कथा के दौरान यादवेंद्र शरण जी महाराज, वेद शरण जी महाराज, ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी जी महाराज, गोविंद दास जी महाराज, सियाराम दास जी महाराज, रघुवर शरण जी महाराज, पवन शरण जी महाराज, बाल स्वरूप ब्रह्मचारी जी महाराज सहित कई प्रमुख संतो की उपस्थिति रही। सभी भक्त भक्ति के सागर मे डूबकर कथा का आंनद ले रहे थे ।

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