
ज्ञान और भक्ति के समन्वय के बिना परमात्मा की प्राप्ति नही – आचार्य रणधीर ओझा
बीआरएन बक्सर। नगर के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में महंत राजाराम शरण दास जी महाराज के मंगलानुशासन आयोजित नव दिवसीय राम कथा 4 बजे से सायं 7 बजे तक चल रही है । कथा के सातवें दिन मनु शतरूपा के चरित्र का वर्णन करते हुए आचार्य श्री रणधीर ओझा ने बताया कि मनु महाराज के मन यह महान दुख हुआ कि मेरा सारा जीवन हरि भक्ति के बिना व्यतीत हो गया । तब अपनी पत्नी शतरूपा को लेकर परमात्मा को पाने के लिए तीर्थ यात्रा किया । मार्ग में जाते हुए दोनों (मनु शतरूपा) ज्ञान और भक्ति जैसा लग रहे है। ज्ञान और भक्ति की श्रेष्ठता और कनिष्ठता को लेकर विचारकों मे बहुत मतभेद रहा है । कुछ लोगों का कहना है कि जीव को परम तत्व की प्राप्ति ज्ञान से होता है तो दूसरा यह गौरव भक्ति को प्रदान करना चाहता है।श्री राम चरित्र मानस में ज्ञान और भक्ति को पति पत्नी के रूप में चित्रित कर दोनों को समान स्थिति में स्वीकार किया गया है। अर्थात पति और पत्नी दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। ज्ञान की पूर्णता के लिए भक्ति की आवश्यकता है और भक्ति भी अपनी समग्रता के लिए ज्ञान पर आश्रित है।
आचार्य श्री ने कहा कि दोनों के मिलन से ही ईश्वर की उपलब्धि होती है।ज्ञान बुद्धि का धर्म है और भक्ति हृदय का यदि कोई व्यक्ति बुद्धि के द्वारा ईश्वर के महात्म्य का ज्ञान प्राप्त कर ले फिर भी उसके हृदय में पाने की आकांक्षा न हो तब परमात्मा को पाना सर्वथा असंभव है। उसी प्रकार हृदय में उसे पाने की तीव्र आकांक्षा होते हुए भी यदि उसके उपलब्धि के उपाय का ज्ञान न हो तब भी उसे नहीं पाया जा सकता। परमार्थ और व्यवहार दोनों क्षेत्र में यह महान सत्य है। परमात्मा की प्राप्ति मे ज्ञान और भक्ति में सामंजस्य स्थापित करके ही सफलता प्राप्त किया जा सकता है। मनु और शतरूपा दोनों पति-पत्नी की साधना एक रहा,मंत्र एक रहा, साध्य एक रहा ,यही कारण था कि मनु शतरूपा के सामने श्री सीता राम जी संयुक्त रूप से आए। इस प्रसंग से हमें यह सीख मिलती है कि मनु शतरूपा के जीवन मे हर प्रकार के सुख सुविधा होते हुए भी परमात्मा की प्राप्ति की इच्छा जागृत हुई । इस मानव जीवन का उद्देश्य केवल संसार की प्राप्ति नहीं है । बल्कि सांसारिक सुख प्राप्त करते हुए ऐसी सुख की प्राप्ति करना है जो शाश्वत हो। परमात्मा का सुख ही शाश्वत है। सांसारिक सुख को स्वप्नवत कहां गया है। मानस के दृष्टि में ज्ञान और भक्ति का समन्वय हुए बिना व्यक्ति को समग्रता( परमात्मा) की प्राप्ति नहीं होती ।