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भाई भरत के चरित्र चित्रण के साथ श्रीराम कथा का हुआ समापन

लोक धर्म के पालन से परलोक में मिलता है सुख: गुप्तेश्वर महाराज

सती घाट पर चल रहे प्रवचन श्रवण को उमड़ी भीड

बीआरएन ,बक्सर।

शहर के सती घाट स्थित लाल बाबा आश्रम में चल रहे श्रीराम कथा का समापन शुक्रवार को हो गया। आश्रम के महंत सुरेंद्र महाराज की सानिध्य में आयोजित कथा के अंतिम दिन श्रीमज्जगदगुरु रामानुजाचार्य गुप्तेश्वर जी महाराज भरत चरित्र की कथा सुनाई।  इस क्रम में उन्होंने कहा कि श्रीराम अपने पिता की आज्ञा मानकर वन गए। श्रीराम का धर्म ही सामान्य धर्म है।  वह मर्यादा पुरुषोत्तम और अपने आचरण से लोगों को मर्यादा का संदेश दे रहे हैं।  लोक धर्म के पालन से परलोक में सुख मिलता है, लेकिन लक्ष्मण जी जिस धर्म का पालन कर रहे हैं वह राम के धर्म से बड़ा है। लक्ष्मण का धर्म विशेष धर्म है क्योंकि वे कहते हैं कि भैया आपका धर्म पिता की आज्ञा का पालन करना है, लेकिन मेरा धर्म सिर्फ आपकी सेवा करना है. मैं किसी माता-पिता को जानता नहीं लेकिन भरत जी का धर्म लक्ष्मण जी के धर्म से भी बड़ा है और वह है-विशेषतर धर्म. यानि निस्वार्थ भाव से अपने प्रियतम के सुख की कामना करना।

कथा सुनाते आचार्य गुप्तेश्वर महाराज

श्रीराम वन गमन प्रसंग के बाद की कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि महाराज दशरथ के स्वर्गवास के बाद भरत व शत्रुघ्न अयोध्या लौटे तो पिता की मृत्यु और अपने प्यारे अग्रज के वनवास के पीछे का कारण अपनी मां कैकई को जानकर उनका हृदय शोक से भर गया. लिहाजा वे अपनी जननी को पापनी तक कह डाले और गुरु वशिष्ठ, कौशल्या, मंत्री सुमंत समेत सारी प्रजा द्वारा राज्य सिंहासन पर बैठने के आग्रह को विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिए और भाई को मनाने वन चल दिए।  कथा को विस्तार देते हुए महाराज श्री ने कहा कि भारत जी का भाव गोपी भाव है। वे गोपी भाव के प्रथम आचार्य हैं लिहाजा श्रीराम के मन की बात समझ कर उन्होंने अग्रज को अयोध्या लौटने के लिए विवश नहीं किया।  वे पादुका लेकर वापस लौट आए और श्रीराम के वापस लौटने तक एक तपस्वी का जीवन व्यतीत करते हुए पादुका से आदेश लेकर राज्य का संचालन करते रहे. भ्रातृ प्रेम का ऐसा उदाहरण विश्व में दुर्लभ है।

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