
पंचकोसी परिक्रमा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं ने लिट्टी -चोखा खाकर त्रेतायुगीन परंपरा का किया निर्वहन ..
विश्व मे केवल बक्सर हीं है , जहां हजारों लोग एक साथ गोइठा की आग पर सेकते हैं सत्तू वाली लिट्टी
राजेश चौबे बक्सर (बिहार)। “माई बिसरी बाबू बिसरी,बाकि पचकोसवा के लिट्टी चोखा ना बिसरी।” भोजपुरी की यह लोकोक्ति आपने शायद सुनी ही होगी । जी हां , बात हो रही है त्रेतायुग से चली आ रही लोकपरंपरा अनुसार पचकोसी परिक्रमा के पांचवे व अंतिम पडाव बक्सर के चरित्रवन मे लिट्टी चोखा मेला की, जहां हजारों की संख्या में एक साथ लोग लिट्टी- चोखा बनाकर प्रसाद के रूप मे ग्रहण करते हैं । शायद ऐसा विश्व मे कोई अन्य जगह नही होगा , जहां एक साथ उपला की आग पर लिट्टी चोखा सेंककर लोग खाते हो । ऐसा केवल बक्सर मे ही देखने को मिलता है, जहां हजारों लोग एक साथ गोइठा की आग पर सत्तू की लिट्टी सेकते हैं और प्रसाद रूप मे ग्रहण करते है।
बता दे कि रविवार को अहले सुबह से ही श्रद्धालुओं ने लिट्टी चोखा बनाना शुरु कर दिया था।किला मैदान सहित चरित्रवन का पूरा इलाका धुंआ से भर गया था। जिसको जहां जगह मिली , वहीं उपले का ढ़ेर को (अहडा) जलाकर लिट्टी सेंकना शुरु कर दिया । यहां तक कि एक व्यक्ति का जैसे ही लिट्टी बनकर तैयार हो जाती , वैसे ही दूसरा वहीं पर अपनी लिट्टी सेंकने का इंतजाम करने लगता। ग्रामीण क्षेत्र से आये श्रद्धालुओं की भीड लगभग शाम मे पांच बजे तक रही , इसके बाद शहर के लोग अपने परिवार के साथ वहां पहुंचकर लिट्टी चोखा बनाकर खाना शुरु किये । यह सिलसिला करीब देर रात तक चलता रहा ।
विश्वप्रसिद्ध मेला से जुडी पौराणिक कथा
ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे आततायी राक्षस महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ को विध्वंस कर दिया करते थे । अतः मुनि ने अयोध्या के महाराजा दशरथ से यज्ञ की रक्षा हेतु श्रीराम और लक्ष्मण को मांगा और अपने साथ बक्सर स्थित आश्रम मे लाये। राक्षसों का संहार कर श्रीरामचंद्र ने यज्ञ को सफल कराया । इसके बाद वह अपने भाई लक्ष्मण के साथ अलग अलग जगहों पर रह रहे ऋषियों का आशीर्वाद लेने के लिए गयें । उन्होने जिस पंचकोसी यात्रा को पूरा किया, उसकी जीवंतता आज भी पंचकोसी मेले में दृश्यमान हो जाती है। आस्था और विश्वास का आलम इतना है कि त्रेतायुगीन यह परंपरा आज भी लोगों के ह्रदय मे है ।यही कारण है कि मोबाईल से चिपके रहने वाले लोग जो रेस्टोरेंट मे बर्गर, पिज्जा खाकर आधुनिकता की संज्ञा देते हुए फास्ट जीवन का रोना रोते हैं , वह भी गोइठा के आग पर बने लिट्टी चोखा को प्रसाद के रुप मे अपने इष्ट- मित्र और पड़ोसियों के साथ जमकर आनंद लेते हुए देखे गये। वैसे तो बिहार का लिट्टी चोखा वर्ल्ड फेमस है, लेकिन पचकोस के दिन यह भगवान श्रीराम का प्रसाद है। इस लिए लोग पंचकोसी परिक्रमा के अंतिम दिन को लिट्टी चोखा मेला कहकर संबोधित करते है। इसी के साथ पंचकोसी यात्रा का समापन हो जाता है।
जाने पचकोसी परिक्रमा से जुडे स्थलों के बारे मे…….
मान्यता के अनुसार श्रीराम चंद्र जी जब अनुज लक्ष्मण के साथ महर्षि विश्वामित्र मुनि की यज्ञ की रक्षा करने बक्सर आये थे तो वह उन पांच स्थानों पर आशीर्वाद प्राप्त करने गये, जहां विभिन्न ऋषियों का आश्रम था ।
1. अहिरौली- सर्वप्रथम श्रीराम चंद्र जी अहिरौली मे गये जहां गौतम ऋषि के श्राप से शिला बन चुकी माता अहिल्या का उद्धार किये। तत्पश्चात वह वहां पूडी पूआ आदि व्यंजनों को खाये। अतः आज भी पचकोसी परिक्रमा की शुरुआत अहिरौली से ही होती है। श्रद्धालु वहां माता अहिल्या के मंदिर मे दीपक प्रज्वलित करने के बाद पूडी पुआ आदि प्रसाद रूप मे ग्रहण करते हैं।
2. नदांव- पचकोसी परिक्रमा का दूसरा पडाव नदांव है। कहा जाता है की वहां महर्षि नारद जी के द्वारा स्थापित शिवलिंग है जिसे नर्वदेश्वर या नारदेश्वर के नाम से जाना जाता है। वहां खिचड़ी, दाल-भात, बरी – फुलवरा आदि का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है।
3. भभुअर– यह पंचकोसी परिक्रमा का तीसरा पडाव है , जहां प्रभु श्रीराम चंद्र महर्षि भार्गव के आश्रम मे दही चूडा खाये थे। वहां भार्गवेश्वर नाथ के मंदिर मे श्रद्धालु पूजन करते है और दही चूड़ा का भोग लगाते है।
4. नुआंव – यह पंचकोसी परिक्रमा का चौथा पडाव है। कहा जाता है की वहां हनुमानजी की माता अंजनी रहती थी। वहां एक तालाब भी है , जो अंजनी सरोवर के नाम से जाना जाता है। इस सरोवर के पास महर्षि उद्दालक ऋषि का आश्रम था, जहां भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। वहां सत्तू मूली खाने की परंपरा है।
5. चरित्रवन- पचकोसी परिक्रमा का पांचवा एवम अंतिम पडाव चरित्रवन बक्सर है, जहां प्राचीन काल से लोग लिट्टी चोखा बनाकर प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते है।